Wednesday, November 30, 2011

ऐ भिखारी कौन प्रदेश का है रे






दिल्ली के व्यस्त इलाके में लालबत्ती पर एक कार रुकी। एक भिखारी एक करोड़ की कार के मालिक को खुदा द्वारा उपलब्ध कराया गया सुनहरा मौका मान तड़ से पहुंच गया । गाड़ी का शीशा नीचे हुआ अंदर स्वयं राहुल बाबा उर्फ़ अमूल बेबी बैठे हुये थे। भिखारी कातर स्वर में बोला - " अल्लाह के नाम पर दे दे बाबा।"  राहुल बाबा ने कहा -" भाई मै धर्म निरपेक्ष पार्टी का हूं, सो भगवान या अल्लाह के नाम से नही दे सकता।" भिखारी अचकचाया, अपने जीवन काल में उसने बहुत से टरकाउ देखे थे,  पर ऐसा अदभुत बहाना किसी ने नही बनाया था। खैर जो ढीठ न हो वो भिखारी कैसा सो उसने कहा -"जो चाहो उस नाम से दे दो बाबा, चाहो तो बिना नाम के भी दे दो।"  राहुल बाबा बोले - "भाई यह बताओ, कहां के रहने वाले हो।"


भिखारी बोला -" भारत का रहने वाला हूं बाबूजी और इंडिया में भीख मांगता हूं।"  तभी बाजू मे खड़ी कार से भगवा नेता चिल्लाया- " अरे निर्लज्ज हिंदुस्तान कहने मे क्या शर्म आती है  तुझे,  मुसलमान है क्या रे।" भिखारी हाथ जोड़ कर बोला- "बाबूजी बचपन से अनाथ हूं , जात का तो पता नही।"  भगवा नेता ने अफ़सोस जाहिर करते हुये कहा - "फ़िर तो तुझे भीख देना बड़ा मुश्किल है,  इसाई  भी होता तो घर वापसी अभियान के अंतर्गत तुझे मैं कुछ दे देता। चल एक काम कर वंदे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगा दे,  मैं तुझे कुछ दे दूंगा।"  भिखारी बोला -"बाबूजी जय जय कार करने वाले नारे वे लगाते हैं जिनके पेट भरे होते है जिस देश मे बूढ़े और मासूम बच्चे भीख मांग कर गुजारा करते हैं,  उसकी जय तो मैं बिल्कुल नही करूंगा।


तभी राहुल बाबा ने दखल दिया - " यार तुम यूपी के होते तो मै कुछ कर सकता था।" तभी वहां पहुंचा दूसरा भिखारी बोले -"माई बाप, मै यूपी का हूं।" राहुल बाब प्रसन्न होकर बोले - "आपको पता नही है कि आपको भिखारी क्यों बनना पड़ा। हमने केंद्र से बहुत सा पैसा भेजा था कि आप फ़लो, फ़ूलो,  पर लखनउ में बैठी हथिनी उसे हजम कर जाती है।" दूसरा भिखारी बोला- " अब तो आप हमसे मिल गये हो माई बाप, यहीं दे दो।" राहुल बाबा बोले- "अगले चुनाव में, आप हमें वोट दीजियेगा। उसके बाद यूपी मे किसी को भीख मांगने की जरूरत नही पड़ेगी। अभी यूपी मे हमारा शासन नही है इसलिये हम आपकी मदद नही कर सकते।"  तभी एक तीसरा भिखारी चिल्लाया - " मै राजस्थान का हूं राहुल बाबा, मेरी मदद कर दीजिये , वहां आप ही की सरकार है।" राहुल बाबा बोले - " भाई मै यूपी का प्रभारी महासचिव हूं राजस्थान के बारे में कुछ नही कह सकता।"

तभी बाबा रामू पहुंच गये बोले - "भाई भिखारी,  एक बार हमारा आंदोलन सफ़ल हो जाये तो हम प्रमाणिकता के साथ गांव गांव को स्वर्ग बना देंगे, तीन सौ तीस लाख करोड़ आ जाये तो भारत वासियो के पास दुनिया भर के सुख होंगे। कोई गरीब न रहेगा, भारत वर्ष सुपर पावर बन जायेगा,  हम भारत को सोने की चिड़िया बना देंगे।" मुग्ध होकर भिखारी बोला- "बाबा फ़िर तो हमें कोई कमी न होगी पर यदि फ़िर भी कभी कभार भीख मांगने का दिल हुआ तो।" बाबा रामू बोले - "कालाधन आ जाने के बाद आपको कमी क्या होगी जो भीख मांगो। फ़िर भी दिल करे तो अपनी मर्सीडीज बेंज मे बैठ कर प्रमाणिकता के साथ भीख मांगना। दस हजार रूपये की भीख से कम जो दे आप उसे ही पांच हजार दे देना कि ले भाई मुझसे ज्यादा तुझे इसकी जरूरत है।"


तभी वहां एक हाथी आकर रुका, उस के उपर एक बहन जी बैठी हुयी थी। हाथी के आजू बाजू समर्थक नारे लगा रहे थे- "बाबा रामू शंख बजायेगा, हाथी दिल्ली जायेगा।" बहन हाथी पर से बोलीं-  "अरे भिखारी तू जरूर अगड़ा गरीब या पिछड़ा मुसलमान है।" हमने केंद्र सरकार से कह दिया है कि दलितो का तो हमने उद्धार कर दिया है, आप लोगो को भी आरक्षण दिया जाना चाहिये।" इसके अलावा हम एक के  चार राज्य बनवा रहे हैं। जब तक आरक्षण न मिले,  तब तक घूम घूम कर भीख मागने की सुविधा हो जायेगी। इस चिकने राहुल बाबा उर्फ़ बबलू के चक्कर में मत आना। यह गरीबो का मजाक उड़ाने ही आता है।  आप से हाथ मिला भी ले,  तो घर जाकर विदेशी साबुन से नहाता है। और बाबा रामू बोल भी चुके हैं कि इससे बेहतर प्रधानमंत्री मैं साबित होउंगी।"

तभी भाजपा नेता बीच में कूद पड़े  - "भाईयो ये राहुल बाबा वालमार्ट नामक विदेशी कंपनी को ला रहा है। उसके आने से हजारो दुकाने बंद हो जायेंगी। इसमे आपका कितना नुकसान है, हर दुकान से एक एक रूपया भीख भी मिलती तो हजारो रूपये हो जाते। और ये वालमार्ट वाला तो राहुल बाबा की तरह इसाई है, देगा नही। दे भी देगा तो हद से हद दस रूपये। सो इस राहुल बाबा के जाल मे न फ़सना, हमे ही वोट देना। इतने बड़े बड़े भिखारियों को देख कर गरीब भिखारियों का कलेजा कांप गया। आपस में मशवरा किया कि भाई इनसे कुछ मिलने वाला नही। हम तो पेट भरने के बाद दूसरो को दे भी देते हैं। इनका तो पेट ही नही भरता हमे क्या देंगे भला।

तभी मजमा जमा देख कर एक हवलदार आ गया बोला -" अरे भिखारियों तुम लोगो कितनी बार भगाता हूं फ़िर भीख मांगने पहुंच जाते हो शर्म नही आती। एक भिखारी ने जवाब दिया - "दरोगा जी जब हम जैसे बूढ़े और मासूम बच्चो को भीख मांगते देख हमारे देश वासियो को शर्म नही आती। तो हम तो लाचार हैं माई बाप , जीवन में कोई सहारा नही। और हम न रहें तो इन घूस खोरो मुनाफ़ाखोरों को इनके पापो से मुक्ति दिलाने का जरिया कौन बनेगा।  आखिर हमें  भीख देकर ही न ये लोग पुण्य कमाते और पाप काटते हैं।"


चलिये साहब ये तो चर्चा थी बड़े और छोटे भिखारियों के बीच,  ये भिखारी हमसे भी अकसर याचना करते हैं। देखियेगा कि कहीं पुण्य के चक्कर मे कोई पाप न हो जाये। 

Friday, November 25, 2011

चांटा लगाऽऽऽऽऽऽऽ~~~~~~~~ हाय रब्बा




एक केंद्रीय मंत्री,  आत्म मुग्ध से पत्रकारों को दुनिया भर के कठिन सवालो का जवाब देते चले जा रहे थे। उनके जवाब हालांकि बेहद सरल थे,  किसी को भी तड़ से समझ आ सकने वाले।  मसलन -"मै ज्योतिष नही हूं", "मामला कैबिनट मीटिंग मे तय होगा"। तभी अचानक एक तगड़े से सरदार, अपने मन्नू की तरह कमजोर नही, बल्की एक दम असरदार, ने दन्न से चांटा जड़ दिया। मंत्री जी पुराने चावल थे,  थोड़ा लखड़ाये जरूर लेकिन तुरंत संभल कर,  पूरे मामले को झटक कर आगे बढ़ गये।

मसला कैमरों में कैद हो चुका था। टीवी चैनलों पर एक ही तमाचा रूक रूक कर, खिंच खिंच कर तड़ातड़ पड़ता नजर आ रहा था। अब देखिये विभिन्न चैनलों मे नेताओ की प्रतिक्रियाएं और उसके बाद हमारे दिमाग में बजी घंटी।

पिटने वाले मंत्री जी - "हमे पता ही नही चला कि क्या हो गया, चेहरा घूम जाने के कारण केवल धक्का ही लगा"

हम - " हां भाई, हमको भी कहां पता चलता है। पांच रूपये किलो का टमाटर पचास रूपये हो जाता है, सौ रूपये फ़ुट की जमीन हजार रू हो जाती है। रही बात चांटे की,  वो तो सामने नजर आ ही रहा है,  कहां पड़ा,  कितनी जोर से पड़ा।"

वित्त मंत्री प्रणब दादा,  धिक्कारते हुये - "पता नही देश कहां जा रहा है।"

हम -"  बात तो सही है मंत्री जी, हमे भी नही पता कि देश कहां जा रहा है। पर इतना जरूर पता है,  ले जा आप ही लोग रहे हो।"

शरद यादव - " ये बात अच्छी नही है सांसद और नेता है तो देश चल रहा है। उनकी इज्जत होनी चाहिये,  हिंसा से नही अहिंसा से विरोध करना चाहिये "

हम - "वाह रे शरद बाबू, कलमाड़ी मामले मे तो संसद मे कह रहे थे कि देश की जनता उदासीन है जाग जायेगी तो पीटेगी होश ठिकाने ले आयेगी। अब जागरूक होकर पीट रही है तो पलटी मार रहे हो, खैर जो पलट न जाये वो नेता कैसा।"


राशिद अल्वी कांग्रेस प्रवक्ता - "यशवंत सिन्हा ने बयान दिया था कि लोग हिंसा पर उतारू हो सकते हैं। यह घटना उसी बयान का नतीजा है।"

हम - "अरे लालबुझक्कड़, इन भाजपाईयों के कहने पर ही जनता रोड में आती तो देश को बाबाओ की अन्नाओ की क्या जरूरत थी। ये लोग तो तुम्हारे ही चचेरे भाई है। बिना पौव्वा,चेपटी बाटॆ तो आडवानी की सभाओ में भी कौव्वे बोलते।"

यशवंत सिन्हा - यह हिंसा मेरे बयान से नही उपजी है, थप्पड़ मारने वाला मेरे बयान के पहले सुखराम को भी थप्पड़ मार चुका था।"

हम - "अरे बुड़बक यह न कहता कि हमने तो पहले ही चेता दिया था कि महंगाई  कम कर नही सकते तो कम से कम पिटने से बचने का इंतजाम कर लो।"

लालू यादव - यह अच्छा घटना नही न हुआ, डेम्होक्रेसी में गांधी बाबा के रास्ते पर चलना चाहिये, हिंसा नही होनी चाहिये।

हम - "हां लालू बाबू आपको सब से ज्यादा खतरा है, बाकी नेता तो अपना शहर छोड़ कही और छुप सकते है। हिंसा फ़ैली तो आपको देश का बच्चा बच्चा जानता है विदेशे भागने से जान बचेगा।"


खैर साहब यह तो इन लोगो की प्रतिक्रिया थी, लेकिन हमारी प्रतिक्रिया भी सही नही है। तमाचा मारना है तो हिंदुस्तानियो को पहला तमाचा खुद के मुंह पर मारना चाहिये। आखिर हम लोग ही न धर्म के नाम पर, जात के नाम पर, निजी फ़ायदे के हिसाब से या पैसा खाकर इन लोगो को सत्ता मे लाते हैं। कहावत भी है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से होय। अभी चुनाव आयेगा तो कोई हिंदुओ को खतरा है का नारा लगाते एक को वोट देगा कोई मुसलमानो पर छाये कयामत के नाम पर दूसरे को वोट देगा। धर्म और जात से उपर उठ कर जब तक हम इमानदारी और विकास पर वोट नही देंगे तब तक यही भ्रष्टासुर राज करते रहेंगे।

Friday, November 18, 2011

भारत पाकिस्तान वार्ता में दवे जी

साहब हुआ कुछ ऐसा कि मनमोहन सिंग साहब ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी साहब को शांती पुरूष करार दिया। बस क्या था पूरे देश में हल्ला मच गया। लोग पानी पी पी कर कोसने लगे, कोई प्रधानमंत्री की इज्जत अफ़जाई कर रहा था और कोई पाकिस्तान को लानते भेजने में लगा था। कांग्रेस पार्टी की गिरी हुयी टीआरपी अजमल कसाब के बराबर पहुंच गयी। आनन फ़ानन में कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक हुयी,  पाकिस्तान से अगली वार्ता सर पर थी और समस्या गंभीर थी। किसी ने सुझाव दिया कि भाई दवे जी नाम के एक फ़ोकटचंद सलाहकार हैं उनसे राय ली जाये।

बुलावा मिलते ही हम तड़ से पहुंच गये,  समस्या सुनकर हमने कहा - " आप हमे मुख्यवार्ताकार बना दीजिये हम मामला संभाल लेंगे।" कांग्रेस के मुंशी मैनेजर चढ़ बैठे - " इस अनुभव हीन आदमी को वार्ताकार बनाना, क्या बेवकूफ़ी की बात है,  इसे कूटनीती का क भी नही आता होगा।" हमने देश की प्रधानमम्मी से कहा - "मम्मी जी, ये सब इतने शिवाजी पाले हैं आपने,  क्या हालत कर दी है आपकी इन लोगो ने। आज शनी भगवान चाहें तो भी आपकी पार्टी की इससे ज्यादा दुर्गती नही कर सकते,  हमको मौका दीजिये हम सब संभाल लेंगे।"  लंबी जद्दोजहद के बाद हमारा नाम तय हुआ, हमारे नाम की घोषणा होते ही पत्रकारों ने हमे घेर लिया।

 एक ने पूछा - " इस बातचीत से आपकी क्या उम्मीदें हैं।"
हमने कहा - " पाकिस्तान से किसी बातचीत का कोई फ़ायदा नही।"
अचकचाये पत्रकार ने पूछा- " फ़िर आप बातचीत क्यों करने जा रहे हैं"
हमने कहा- " ताकि अमेरिका की आत्मा को शांती मिले "

हड़बड़ाये कॄष्णा साहब कोई दखल देते इसके पहले ही हमने अगली लाईन जड़ दी- " जब तक वार्ता में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष और आई एस आई प्रमुख न होंगे, हम पाकिस्तान से बात नहीं करेंगे। और अगर पाकिस्तान नही सुधरता तो हमें सुधारना भी आता है।"

हमारे इस बयान के बाद कांग्रेस मुख्यालय से लेकर अमेरिका तक  कूटनीतिक धमाका हो गया।  चारों ओर से दबाव पड़ने लगा,  प्रधानमम्मी पर उनके मुंशी मैनेजर चढ़ बैठे-  " देखा मम्मी जी, हम न कहते थे, आपने किसी भी  रोडछाप आदमी को वार्ताकार बनाकर भूल कर दी है।" भारी दबाव में आयी प्रधानमम्मी ने हमें फ़ोन लगाया - " दवे जी आप ने ये क्या कर दिया,  पहले ही हम इतनी मुसीबत में हैं और अब ये नया संकट आ खड़ा हुआ है।" हमने कहा - "मम्मी जी आप कल सुबह तक इंतजार करें, अभी आप तनाव न लीजिये।"

अगले दिन सुबह अखबारों की हेडलाईन -
टाईम्स आफ़ इंडिया - " भारत का मुंहतोड़ जवाब",   द हिंदू - " चौसठ साल बाद उठाया सही कदम",  दैनिक जागरण - "सकते में पाकिस्तान",  दैनिक भास्कर - "प्रधानमम्मी का सही कदम, इंदिरा गांधी की यादे ताजा"

राजनैतिक दलो के बयान
भाजपा-  "कमजोर प्रधानमम्मी ने देर से सही कदम उठाया"
कम्यूनिस्ट पार्टी - " अमेरिका के दबाव मे न आकर, हमें कदम पीछे नही खीचना चाहिये",
संघ - "प्रधान मम्मी के अगले कदम की प्रतीक्षा, साहस पूर्ण सही कदम"

विभिन्न देशों के बयान
अमेरिका - " भारत और पाकिस्तान की समस्या बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझ सकती है"
ब्रिटेन   - "परमाणू शक्ति संपन्न देशो को संयम से आपसी संबंध सुधारने चाहिये"
चीन    - "चीन पाकिस्तान का अभिन्न मित्र है, संकट की घड़ी मे हम पाकिस्तान का पूरा साथ देंगे"

अगले दिन जब हम कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे तो मंजर बदला हुआ था। अपार जनसमर्थन से प्रधानमम्मी का चेहरा दमक रहा था और मुंशी मैनेजर दाये बायें झांक रहे थे। मन मार कर सबने हमे बधाई दी, विदेश मंत्री बार बार अमेरिका के और दुसरे देशो के पड़ते दबाव का जिक्र कर रहे थे। हमारी अमेरिका की विदेश मंत्री चची हिलेरी क्लिंटन से बात कराई गयी।  हम पर वे बरस पड़ी दो परमाणू संपंन्न देशो के बीच तनाव का अंजाम, दक्षिण पूर्व एशिया के हालातो की दुहाई देने लगीं। हमने उन्हे भरोसा दिलाया कि हम वार्ता को शांती पूर्ण तरीके से निपटायेंगे और वार्ता खत्म होते ही दोनो देशो के संबंध सुमधुर हो जायेंगे।

खैर साहब वार्ता तो होनी ही उसके बिना पाकिस्तान के दान दाता अमेरिका को चैन नही पड़ता। भारी दबाव के बीच मन मार कर पाकिस्तान  प्रतिनिधी मंडल भेजने को तैयार हुआ। हमने दुनिया भर के समुद्रतटों का फ़ोटू देख मारीशस चुना। जब हम एयरपोर्ट पहुंचे तो देखा विदेश मंत्री के साथ तीस चालीस अधिकारी भी झोला पकड़ जाने को रेडी थे। हमने कहा- " ये लोग क्या करेंगे भाई।" विदेश मंत्री जी बोले -"ये लोग अलग अलग मंत्रालयो से है।" हमने कहा- "दादा जी वहां इनका क्या काम, खाली दारू मुर्गा चबा के समुद्र तट मे सुंदरियों को ताड़ के लौट आयेंगे। इनकी जरूरत नही फ़ोकट देश का पैसा खराब होगा।"

विमानतल पर पत्रकारो ने हमसे पूछा - " दवे जी, बिना अधिकारियों के क्या बात होगी"

हमने कहा- " दॊ टूक बात करने के लिये अफ़सरो की फ़ौज नही चाहिये। हमारा संदेश छोटा और  साफ़ है , हरकतों से बाज आओ, आतंकवाद नही  शांती और विकास का रास्ता पकड़ो।"

उसके बाद हम लोग मारीशस पहुंचे,  हमसे पूछा गया कि पाकिस्तानी प्रतिनिधी मंडल में पहले किससे मुलाकात करना पसंद करेंगे । हमने तड़ से कहा- "हिना रब्बानी खर से।"  मुलाकात तय होते ही हमने सेंट परफ़्यूं छिड़का काला चश्मा लगाया और पहुंच गये हिना मैडम से मीठी मीठी बाते करने। मुलाकात भी हुयी, बाते भी हुयी, पर औरतों को भी अल्लाह ने गजब ताकत दी है, वे लंपटो को पहचान ही जाती हैं। खैर साहब, कहें क्या वार्ता के बाद हिना मैडम ने कॄष्णा साहब से हाथ भी मिलाया,  साथ फ़ोटॊ भी खिंचाई और हमें दूर से ही नमस्कार कर दिया। आप हमारे लिये दुखी न हों, हमे सुंदरियों द्वारा दूर से नमस्कार किये जाने की आदत सी हो चुकी है। विदेश मंत्री जी इसे अपनी कूटनीतिक विजय समझ रहे थे,  हमसे मुस्कुरा कर बोले- दवे जी कूटनितीक जगत में मंत्रियों की ही आपस में बात होती है।" हम जले भुने थे ही हमने कहा - "दादा जी ज्यादा  मत मुस्कुराओ,  नही तो मुह की सुपारी और दांत दोनो गिर जायेंगे।"

खैर साहब अगला दौर हमारे और पाकिस्तान की सेना के बीच था।  माहौल तनाव पूर्ण था, सेना प्रमुख जनरल कियानी और आईएसआई प्रमुख जनरल पाशा को हमने ब्लू लेवल व्हिस्की, कीमती सिगरेटॊ से लेकर चांदनी चौक की सोहन पापड़ी तक तमाम चीजे भेंट की। फ़िर हमने कहा - "गुरू,  क्यों न एक दो पैग शैग लगा लिये जाये।" दोनो जनरलों ने हमे विश्व के तीसरे अजूबे की तरह देखा। जनरल कियानी बोले- " हम पाकिस्तानी हैं, बातचीत होशो हवास में करते है।" हमने कहा- "जनरल साहब, बात शात क्या करनी जैसा चल रहा है चलने दो। हम तो बधाई देने आये हैं, वाह गुरू क्या चाल चली क्या फ़साया अमेरिका को अफ़गानिस्तान में, मान गये।" तारीफ़ सुन कर दोनो जरा ढीले हुये, आधे घंटे यहां वहां की बात होने के बाद हमने कहा- " यार जनरल साहब आपको जो करना है करते रहो और हम भी करते रहेंगे। पर ये चीजे कब और कहां करनी है इस पर तो समझौता हो सकता है की नही। " बात दोनो के भेजे में घुसने लगी- " पाशा साहब बोले-  "हां, इस पर बात हो सकती है, आप बतायें क्या चाहते हैं" हमने कहा -"भाई आप लोगो को राजनैतिक दलो को सत्ता से दूर रखना है और हम लोगो को विपक्षी पार्टियों को। धमाका तो हो पर वहां हो जो सरकार को नही,  विपक्ष को मुसीबत में डालने वाला हो।" इस विषय पर आगे तकनीकी चर्चा हुयी हमने केवल विपक्ष शासित प्रदेशो मे बम धमाका करने का प्रस्ताव पास करा लिया और पाकिस्तानियों की भी कुछ मांगे मान ली। ये बात भी तय हो गयी कि संबंध इस स्थिती से न सुधारना है न बिगाड़ना है। हमारी आड़ लेकर जनरल साहब अफ़गान बार्डर से फ़ौजें हटाने की धमकी देते रहें और अमेरिका से डालर वसूलते रहें और हम देश में देश भक्ति की हवा बहाकर और पाकिस्तान से लड़ाई का फ़िजां बनाकर तमाम मामलों से जनता का ध्यान हटा दें। आखिर मे जनरल कियानी बोले- "चलिये अब मीडिया के सामने कुछ अच्छी अच्छी बाते कर ली जायें।"

हमने कहा- "जनरल साहब, क्या किये कराये में पानी फ़ेरना है, ऐसा किया तो आप के यहां के हिंदू विरोधी चरम पंथी और हमारे यहां के मुस्लिम विरोधी चरम पंथी अपना अपना राजनैतिक एजेंडा लेकर पिल पड़ेंगे। और मीडिया भी कोसने को ही देश भक्ति मानती है ऐसा करने से अपने कुर्कमो का बोझ पत्रकारों के दिल से हल्का जो हो जाता है।" जनरल साहब बोले- "बात तो सही है, फ़िर किया क्या जाये।" हमने कहा- "करना ये है कि यहां से बाहर निकल कर एक दूसरे को कोसना है एक दूसरे के लिये धमकियां देनी है। आखिर में दुनिया भर से दबाव पड़ेगा तो दोनो फ़िर अगली वार्ता के लिये सहमत हो जाना है।"

जनरल कियानी मुस्कुराते हुये बोले- "मिया दवे जी, आप लालबहादुर शास्त्री के बाद दूसरे आदमी हो जिसे पाकिस्तान मे पैदा होने था, गजब खोपड़ी लगाई है भाई।" हमने कहा- "कियानी साहब, भाई कहा है तो हमारा एक काम करना होगा। जब फ़िर से वार्ता करने की बात पर सहमति बन जाये तो जरा हिना रब्बानी खर मैडम के साथ हाथ मिलाते और मुस्कुराते हुये हमारा एक फ़ोटॊ सेशन करवा दीजियेगा।"

चलिये मामला हमारे हिसाब से जम भी गया और हिना मैडम के साथ फ़ोटो सेशन भी हो ही गया। आप सोचते होंगे कि दवे जी हिना मैडम के  साथ फ़ोटो खिचाने को इतने आतुर क्यों तो साहब जब चौका बर्तन का बोझ ज्यादा हो जाये और और पति किसी सुंदरी के साथ खिंची अपनी फ़ोटो के सामने खड़ा नजर आये, तो सुना है बीबियां शौहर से  कुछ समय के लिये बड़ी मुहब्बत से पेश आती  हैं।

रही बात भारत पाकिस्तान संबंधो की, तो साहब इन बातचीतों से कुछ होना जाना नही है। मुद्दो को हल करने की इच्छा ही न हो तो राह निकल ही नही सकती। इच्छा हो भी जाये तो दोनो तरफ़ की मीडिया तिल का ताड़ बनाकर हर वार्ता को ढेर कर देती है। मीडिया साथ हो भी जाये तो दोनो तरफ़ के विपक्षी और पाकिस्तान के सेना इस दोस्ती मे सेंध लगाने से बाज नही आते। आखिर अपना हित देश के हित के आड़े जो आ जाता है। इसलिये इस बातचीत से हमने कम से कम देश की प्रधान मम्मी भला किया की नही।

Sunday, November 13, 2011

बाबा रामू का प्रवचन

एक दिन सुबह सुबह श्रीमती ने फ़रमाईश रख दी- " बाबा रामू आये हुये हैं,  आपको हमें प्रवचन में ले चलना होगा।  हमने कहा भी कि भाई आज कल बाबा रामू में पहले जैसे योग नही सिखाते है फ़ोकट राजनैतिक प्रवचन झेलना होगा" श्रीमति कहां मानती हमे ले जाकर ही दम लिया।

खैर बाबा का प्रवचन शुरू हुआ, बोले - "हम प्रमाणिकता के साथ आपकी बीमारियों को दूर भगा देंगे और विदेशों से कालाधन वापस ले आयेंगे।"  उसके बाद बाबा ने कपाल भाती सिखाना शुरू किया, बोले- " जोर से सांस खींचो।"  हमने सांस अंदर ली,  फ़िर बाबा बोल उठे- "कालाधन छोड़ो।" हमने कहा- " बाबा हम तो आपके कहे में केवल सांस अंदर किये हैं, अब कालाधन कैसे छोड़ें।"  बाबा बोले - " बेटा आप को सांस ही छोड़ना है कालाधन वाला बात तो हम कांग्रेसियों के लिये कह रहे थे।"

बाबा फ़िर शुरू हुये - " देश का तीन सौ तीस लाख करोड़ कालाधन विदेशो में जमा है। हम कानून बनवा कर इसे राष्ट्रीय संपंत्ती घोषित कर देश में वापस लायेंगे।   इस पैसे को हम बैंक में जमा करवा देंगे,  इससे हर साल तैतीस लाख करोड़ की आमदनी होगी।  इससे हम गांव गांव को स्वर्ग बना देंगे,  इस पैसे से हिंदुस्तान की हर सड़क पर दस मिमी मोटी सोने की परत चढ़ाई जा सकती है। गांव गांव में खादी बुनी जायेगी,  पंदरह करोड़ लोगो को इससे रोजगार मिलेगा।  पूरा विश्व भारत का बनाया कपड़ा ही पहनेगा।  गाय के गोबर से हम मीथेन गैस बनाकर इससे बिजली बनायेंगे फ़िर भारत को तेल आयात करने की जरूरत नही होगी।"

इतना सुनते सुनते हम सपनो में खो गये। बाबा देश के राष्ट्रपति और हम उनके प्रमुख सचिव बन गये। हमसे मिलने के लिये लोगो का ताता लग गया।  हर कोई शिकायत बताने और मांगे लेकर हमारे पास आ रहा था। एक प्रतिनिधी मंडल आया,  बोला - " साहब हमारे दलित गांव का गोबर,  पड़ोस के गांव के दबंग छीन कर सोसाईटी में बेच देते हैं।" हमने तुरंत आदेश जारी किया- "गायो के मालिको का हिसाब रखा जाये और नाथूराम गोड़से गोबर खरीद गारंटी मिशन के अंतर्गत चेक से सीधे मालिक के खाते में भुगतान हो।"


तभी विभिन्न देशों का के राजदूत मिलने आये, पाकिस्तान वाला बोला- "सर आपने हमसे कपास खरीदना क्यों बंद कर दिया है।" हमने कहा-  " पहले आतंकवाद बिल्कुल बंद होना चाहिये,  दाउद के जैसे तमाम आरोपी भारत को सौंपिये, उसके बाद आपसे कपास खरीदा जायेगा।" अगला दल यूरोप का था, आते ही गिड़गिड़ाने लगे- "माई माप,  सारे यूरोप का पैसा तो आप वापस ले गये हो।  हमारे यहां हाहाकार मचा हुआ है,  हमें कर्ज दीजिये वरना हम तबाह हो जायेंगे।"  हमने कहा- "अपना सोना गिरवी रखना होगा,  उसके अलावा ब्रिटेन के म्यूजियम में भारत  की जितनी ऐतिहासिक वस्तुयें हो, वो सब लौटानी होगी।  आखिरी शर्त लंदन के मुख्य मार्केट की सड़क हमारी होगी। उसमें बोर्ड लगा होगा- " ब्रिटिश एन्ड डाग्स नाट अलाउड।"

 इसके बाद अमेरिका के वैज्ञानिकों का दल था,  वे आते ही चढ़ बैठे-  "आप विश्व हित की टेक्नोलाजी को  छुपा  रहे हो।  आप वसुदैव कुटूंबकम की हिंदू संस्कृती भूल गये हो।"  हमने  पूछा- " भाई मामला क्या है।"  वे और भड़क गये- " आपके यहां गायें खुल्ला घूमती है,  उनके पीछे गोबर इकठ्ठा करने के लिये भागना पड़ता है। फ़िर भी आप उस गोबर से मीथेन गैस बना,  इंधन के मामले में आत्म निर्भर हो गये। और हम है कि दस हजार गायें एक एक फ़ार्म में पालते है,  सबका गोबर आटॊमेटिक एकत्र हो जाता है। फ़िर भी हम उसका उपयोग करने में असमर्थ हैं।" हमने कहा- " हम आपको गोबर की तकनीक विशेष शर्तो पर उपलब्ध करा सकते हैं।  इस तकनीक में काम आने वाला गौ मूत्र,  शुद्ध भारतीय होगा।  यह गोमूत्र आपको सौ रूपये प्रति लीटर पर खरीदना होगा।"  शर्ते सुन कर अमेरिकी जमीन में लोट गये बोले -" माई बाप पहले एक रूपये की कीमत पचास डालर हो गयी है,  हम ये बोझ और न सह पायेंगे।"  हमने इंकार में सर हिला दिया

अमरीकन बोले- " हम बाबा रामू से सीधे बात करेंगे।"  हमने कहा -" सौ देशो की खुफ़िया पुलिस बाबा रामू को खोज रही है कि उनके हाथ लग जायें तो उनके देश का भला हो जाये। इसलिये वे गुप्त स्थान पर रहते हैं,  आप नही मिल सकते।"  जाते जाते अमेरिकन भुनभुना रहे थे -" जितने आलतू फ़ालतू बाबा थे,  उनको हरे रामा हरे कृष्णा करने अमेरिका भेजते रहे और महान  बाबा रामू से मिलने तक नही देते हैं।"


तभी  भाजपा के गुड़गुड़ी साहब आ गये, बोले, "दवे जी चुनाव सर पर आ गया है,  देश में कोई समस्या ही नहीं बची है, जनता से कहें क्या?" हमने कहा - "कल ही वित्त मंत्री  कह रहे थे कि सारे विकास कार्य हो चुके हैं। जो बचे हैं, उनके लिये पैसा आबंटित हो चुका है। अब हर साल ब्याज के तैंतीस लाख करोड़ खर्च कहां करें? आप विश्व के सत्तर गरीब देशों की इस पैसे से मदद कीजिये।  फिर यूएन में उनकी सहायता से प्रस्ताव पारित करा लिया जायेगा कि चीन और पाकिस्तान भारत को जमीन वापस करें।  बिना लड़े जमीन वापस आ गई तो समझिये अगला चुनाव जीतना तय है।"  ।"  

प्रसन्न होकर गड़करी साहब निकले ही थे कि तभी तेल उत्पादक देशों (ओपेक) का दल आया। आते ही गिड़गिड़ाने लगे -" साहब कोई ऐसे आर्डर कैंसल करता है क्या भला।  आपने तो हमे कहीं का नही छोड़ा। " हमने कहा- भाई करे क्या अब कुछ काम ही नही रहा तेल का,  अब तो खाली परंपरा निभाने के लिये राष्ट्रपति पंदरह अगस्त को पेट्रोल  कार में बैठ कर समारोह में जाते हैं।"  बाकी देशों ने तो मन मसोस लिया, लेकिन अरब वाले पैरों में गिर गये- "माई बाप हमारे छोटे छोटे बच्चों पर तरस खाओ, साल मे कम से कम पांच टैंकर ले लो।" हमे याद आया, जब तेल बिकता था तो कैसे अकड़ते थे साले, हमने तुरंत लात जड़ी - "चलो भागो यहां से।"

तभी हमारा स्वप्न भंग हो गया।  देखा तो हमारे सामने बैठा श्रद्धालू मुंह के बल जमीन पर पड़ा था।  हमारी लात अरब राजदूत को नही,  उसे पड़ी थी। लोग भड़क गये,  हमें घेर लिया। तभी बाबा रामू ने बीच बचाव करते हुये पूछा- " क्या बेटा लात क्यों मारी।"  हमने  सफ़ाई दी- " बाबा आपकी बाते सुनकर हमे कांग्रेस पर इतना गुस्सा आया कि हम क्रोध में होश खो बैठे और गलती से लात चल गयी।"

 माफ़ी मांग हम प्रवचन से उठ तो आये। लेकिन कहे क्या,  आज तक मन कालेधन की वापसी की राह देख रहा है।  रोज भगवान से दुआ करते हैं कि बाबा को इतनी शक्ती दे कि बाबा कालाधन वापस ले आयें। गोबर से मीथेन गैस बना परमाणू संयंत्रो से, कोयल की राख से मुक्ती दिलवाये।  पूरा विश्व भारत का माल खरीदे पर भारत किसी देश का माल न ले।

Tuesday, November 8, 2011

हाय हिंदी हाय हिंदी हाय हाय

बार में भाई दीपक भाजपायी बियर का घूंट भरते हुये बोले- " यार हिंदी के गिरते स्तर से मैं बहुत दुखी हूं,  ऐसा ही चलता रहा तो हमारी मातृभाषा खत्म हो जायेगी।" बाजू में बैठे सोहन शर्मा उर्फ़ कांग्रेसी ने भी सहमति में सर हिलाया, बोले - " मै दीपक जी की बात से सहमत हूं।" हमने दाये बायें देखा फ़िर उनसे कहा -" मियां गजब करते हो,  कोई सुन लेता तो जान जाता कि आप दोनो एक ही थैली के चट्टॆ बट्टे हो।" दोनो ने एक सुर में जवाब दिया- "देश हित के मामलों में हम एक हैं।" हमने कहा - "भई वाह, हम तुरंत जाकर तमिलनाडु, केरल, आंध्रा जैसे राज्यों में जाकर सूचना दे देते हैं कि अब से काम हिंदी में ही होगा।  संसद में इस बात पर दो तिहाई बहुमत हो गया है।" सोहन शर्मा उर्फ़ कांग्रेसी ने तुरंत विरोध किया- " दवे जी, हमने हिंदी के स्तर को उपर उठाने की बात की है,  राज्यों मे हिंदी में काम करने की बात नही की है।"  हमने कहा - "मियां ये बात तुम्हारे बस में भी नही  है ,सिर्फ़ दीपक भाजपायी की पार्टी यह काम कर सकती है।"  सोहन शर्मा जी भड़क गये -" बोले आप साबित कर के बताओ।"

हमने कहा- "साबित कुछ नहीं करना है, ये लोग बोलते हैं कि जो भारत में रहता है वो हिंदू है, इसलिये जो भारत मे बोली जाती है वो हिंदी।  ये लोग मुस्लिम, इसाई, पारसी सब को हिंदू बोल सकते हैं तो कन्नड़, मलयाली और तमिल को भी हिंदी बोल सकते हैं। अब तो ये लोग हिंदू राष्ट्र का बड़ा वाला नक्शा भी बना लिये हैं। अब उर्दू, बर्मीस, थाई, सुमात्रन पता नही कितनी भाषायें हिंदी बन जायेगी। कांग्रेसी ऐसा उत्थान तो सौ जन्मो में भी नही कर सकते।" इतना सुन दीपक भाजपायी भड़क गये- " दवे जी बात हिंदी के उत्थान की हो रही है और क्या क्या बड़बड़ा रहे हो, मुद्दे पर की बात करो।"

हमने कहा-  "भाई मेरे, हिंदी संम्मेलन में आधे से उठकर दवे जी जैसे गरीब लेखकों को बियर पिलाने से तो हिंदी का उद्धार नही न होगा। हिंदी का उत्थान चाहते हो ये तो ठीक है, पर यह होगा कैसे यह बताओ।"  शर्मा जी बोले - " हमारी सरकार ने राज कार्य में हिंदी भाषा के प्रयोग के लिये बहुत कुछ किया है। हमारी प्यारी मम्मी ने तो इटली की होने के बावजूद हिंदी में भाषण देना सीख लिया है। आगे हम और जोर शोर से इस दिशा मे कार्य करेंगे।" हमने कहा- "शर्मा जी तुम तो रहने ही दो, साठ साल हो गये भाषण पिलाते। हिंदी की चिंदी हो गयी पर  आपकी बेशर्मी कम नही हुयी, फ़िर नया वादा करते हो, आप तो बस इतना कर दो स्विस बैंक मे किस किस के खाते हैं यह सूची हिंदी में जारी कर दो ताकि आम आदमी पढ़ सके।" दीपक भाजपायी प्रसन्न हो कर बोले -"सही कहा दवे जी हम लोग हिंदी की शुद्धी को वापस लायेंगे और हिंदी को हिंदुस्तान की शान बनायेंगे।" हमने कहा- " भाई तुम तो जाओ हिंद महासागर और अरब सागर के बीच दीवाल बनाओ पहले। दीपक भाजपायी बोले- "वो क्यों।"  हमने कहा- "भाई अरब सागर का पानी  हिंद महासाहर को दूषित कर रहा है कि नही और आप तो हिंदी, हिंदू ,हिंद इन से जुड़ी हर चीज के स्वयंभू रक्षक हो।"  दीपक भाजपायी बोले- "यार आप बियर पीने के बाद बहक जाते हो,  पता नही क्या क्या बोलने लगते हो।"


शर्मा जी ने बीच बचाव किया- "दवे जी बहस से क्या फ़ायदा, आप उपाय बताओ।" हमने कहा - "भाई किसी भी भाषा  का स्तर तभी उपर उठता है, जब उसमे नित नयी नयी उतकृष्ठ रचनाओ का निर्माण होता है। जिसे पढ़ने मे आम आदमी की रूचि जागती है। इस रूची से भाषा की मात्राओं और व्याकरण से भी आम आदमी परिचित होता है। दूसरी ओर भाषा तभी संमृद्ध होती है जब उसमें दूसरी भाषाओं के रोचक और वैज्ञानिक शब्दो का समावेश होता है। अब इसको भाषा का असमृद्ध होना बोलेगे तो फ़िर वही,  एक से एक कठिन शब्द जैसे रुद्धोष्म भित्ति, वेफशिकात्वीय तरंगें  का निर्माण करोगे। अव्वल तो विद्यार्थी इसका शब्दार्थ नही निकाल सकता सो रटन्तु विद्या का सहारा लेगा। और कालेज पहुंच गया तो फ़िर चारो खाने चित्त फ़िर अंग्रेजी के शब्द को समझो रटो और स्कूल मे पढ़े ज्ञान को कालेज की पढ़ाई से कनेक्ट नही कर सकता। सो मियां अगर हिंदी को समृद्ध बनाना है तो लेखको कवियों की पेट पूजा का ध्यान रखना होगा, उन्हे सम्मान देना होगा। ये नही कि लेख लिखा और अखबार वाले ने दो सौ रूपये पकड़ा दिया।"

दीपक भाजपायी ने टांग अड़ाई - दवे जी अब आप तो यह भी कह दोगे कि उर्दू के शब्द भी मिला दो आप तो हो ही क्षद्म  धर्मनिर्पेक्ष।  मौका मिला नही और पहुंच गये मुसलमानो को खुश करने।" हमने कहा- क्यों मिया उर्दू पैगंबर साहब ने बनाई थी कि मदीने में बैठ कर किसी ने लिखी थी।  भाई भाषा तो वही है, उसको पाकिस्तान में उर्दू बोले या हिंदुस्तान में हिंदी। पाकिस्तान के चैनल देखे होते तो पता चलता कि वहां प्रयोग होने वाले आधे शब्द हिंदी के हैं। भाषा बनाई नही जाती जनमानस जो बोलता है वह बन जाती है उसमे सुधार साहित्यिक कृतियों से ही होता है, गायन से होता है। जगजीत सिंग को हिंदी सुर सम्राट कहते है कि उर्दू सुर सम्राट।  हिंदी फ़िल्में नही होती तो आज भी आधा देश हिंदी का ह नही जानता।"

बात रिश्वत की तरह दीपक भाजपायी और सोहन कांग्रेसी के दिल मे प्रवेश कर गयी। दोनो फ़िर एक सुर में बोले - "दवे जी आपका कहना सही है। हम दोनो मिल कर इस दिशा मे प्रयास करेंगे।" हमने कहा- " वाह रे कलयुग के कालिदासों, जिस  डंगाल में खड़े हो उसे ही काट दोगे।" दोनो चट्टे बट्टॆ हैरानी से हमारी ओर देखने लगे, हमने समझाया- "भाई लेखकों का पेट भर जायेगा तो  सामाजिक विषमता, भ्रष्टाचार, धर्म के नाम पर राजनीति, देश के संसाधनो की लूट इन पर लेखो की बाढ़ आ जायेगी, लोग पढ़ेंगे तो जाग जायेंगे। मियां फ़िर देश की जनता आप लोगो को पीटेगी,  होश ठिकाने ले आयेगी,  सारी नेतागिरी उड़न छू हो जायेगी।"

दोनो भाई सतर्क हो गये- "बात तो आप सही कह रहे हो दवे जी, तो किया क्या जाये।"  हमने कहा- करना क्या है भाई, सोहन बाबू आप बाबा ठग, अन्ना के साथी भ्रष्ट छपवाते रहो और दीपक बाबू तो लगे ही है नेहरू का दादा मुसलमान था,  लव जिहाद चल रहा है, हिंदू धर्म पर मंडराते खतरे। बस चैन की बंसी बजाते रहो और हाय हिंदी हाय हिंदी गाते रहो। जब मन ज्यादा दुखी हो जाये तो हमारे जैसे गरीब लेखको को कुछ खिला पिला दिया करो मन का बोझ भी हल्का हो जायेगा और स्विस बैंक का खाता भारी का भारी रहा आयेगा।"

Thursday, November 3, 2011

दवे जी और जन्नत की 72 हूरें (अप्सरायें)

रात को सोते समय श्रीमती ने पूछ लिया - "क्यों जी आपको स्वर्ग में 72  हूरें मिल जायेंगी तो आप क्या करोगे"। हमने कहा - " बिल्कुल आपकी तरह दिखती होंगी तो ठीक वरना हम लौटा देंगे।"  श्रीमति प्रसन्न होकर सो गयीं और हम भी नींद के आगोश मे चले गये।"  सपने में हमने देखा कि हम अस्पताल में भर्ती हैं और हमें स्व. श्रीलाल शुक्ल जी की तरह ज्ञानपीठ पुरुस्कार  देने स्वयं राज्यपाल आये हैं। हमें तभी अंदर से सदबुद्धी ने टोका- " तुझे कहीं पुरूस्कार मिल सकता है रे बुड़बक।" हमनें जवाब दिया- " मियां जिस तरह पुरूस्कारों का स्तर गिर रहा है, हमारे बुढ़ाते तक ज्ञानपीठ पुरुस्कार  भी ऐरे गैरों को मिलने लगेगा।" खैर साहब फ़िर हम  सपने में टपक गये और सीधा स्वर्ग या कहें जन्नत के दरवाजे में पहुंचे।

वहां एक पंडित टाईप और एक मौलवी टाईप द्वारपाल खड़े थे। हमसे पूछा गया कि हिंदू हो या मुसलमान। हमें तत्काल 72 हूरों की बात याद आयी, चूंकि हम ब्राह्मण हैं और वेद पुराण भी बांची है। तो हमे हमे पता था कि अप्सराओं का जिक्र तो है, पर कितनी मिलेंगी इसकी कोई गारंटी नही दी गयी है। सो हमने मुसलमान वाला आप्शन चुना। मौलवी द्वारपाल ने हमारा हिसाब निकाला, बड़े गौर से पढ़ने लगा कि हमे जन्नत अता की जाये या दोजख में धकेल दिया जाये। आखिर में उसने घोषणा की - " वैसे तो जनाब व्यंग्यकार थे और जो लिखा उससे लोग जले भुने ही हैं और नेकी का कोई काम भी नही किया है। पर कर्तव्य की सीमा से आगे बढ़ कर खतरनाक बीबी की मौजूदगी के बावजूद, तहे दिल से घर का झाड़ू, पोछा, बर्तन, चौका करने और बीबी की झिड़कियों को सुनने के बावजूद इसने इसका दोष कभी अल्लाह को न दिया। हर दम अपनी बेवकूफ़ी को ही कोसता रहा। गोया इसे दोजख में मिलने वाले सारे दंड जमीन पर ही मिल चुके है। इसलिये इस इंसान को जन्न्त अता फ़रमाई जाती है।"

 हमें जन्नत के अंदर ले जाया गया और द्वारपाल ने 72 हूरों को बुलवाया और उनसे कहा लो जन्नत का मजा अब ये तुम्हारे हवाले।  हम सकपकाये कहा- " हुजूर जन्नत का मजा लेने हम आये हैं कि ये हूरें।  द्वारपाल ने ठहाका लगाया - "बड़े व्यंग्यकार बने फ़िरते थे मियां, हम तो मजाक कर रहे थे और आप हैं कि घबरा गये।"

खैर साहब द्वारपाल ने बुरका पहनी हूरों को हमारे हवाले किया। हमने कहा- हुजूर जन्नत में भी बुरका। " द्वारपाल बोला- "आदमी को 72  मिलें या 72 सौ, मन तो उसका भरता नही और जन्न्त में परायी औरत पर नजर टिकी नही कि सीधे दोजख मे डाल दिया जाता है। सो आप जैसे लंपट जन्नत का मजा ले सके इसलिये ये सावधनी बरती गयी है।  द्वारपाल के जाने के बाद हम नर्विसिया गये, मुसलमान होते तो कम से कम चार को संभालने  का अनुभव होता यहा तो हम एक भी ठीक से हैंडल न कर पाये थे और अब मामला 72  को संभालने का था।

हमने सोचा जब जन्न्त में ही रहना है तो जल्दबाजी कैसी,  जरा टहल लिया जाये। सो हमने 71 हूरों से अलग अलग तरह के पकवान बनाने को कहा और एक को साथ ले निकल पड़े। सैर के दौरान  हमने हूर से गुजारिश की- " बेगम जरा अपना चेहरा तो दिखाओं।"  हूर ने सकुचाई सी मीठी आवाज में कहा- " हम केवल हरम में बुरका हटा सकते हैं बाकी जगह पाबंदी है"।  हमने सोचा,  खामखा हड़बड़ी की तो जमीन की बेगम की तरह इन बेगमो पर भी हमारा गलत इंप्रेशन पड़ जायेगा।  एक बार इज्जत गवांई तो चौका बर्तन ही नसीब होता है इस बात का हमे अनुभव था ही।

घूमते घूमते हमें एक और जन्नत नशीं सज्जन मिलें, वे पूरे काफ़िले साथ थे। दुआ सलाम हुयी, हमने  कोने में लेकर पूछा- "72 बेगमों को हैंडल कैसे किया जाये, आपने अलग अलग दिन बांधे है कि कोई और व्यवस्था की है।" वे हसने लगे बोले - "मियां अब आप जमीन पर नही जन्नत में हो, यहां ये नही कि दस पराठे खाये और पेट भर गया चाहो तो हजार खा लो।" हमने सोचा ये बात तो अपने भेजे में आयी ही न थी। खुदा ने 72  हूरें दी है तो सोच समझ कर ही न जन्नत आखिर जन्नत कहलाती किसलिये है। हमने सज्जन से हंसी खुशी विदा ली और हूर से कहा अब हम हरम में आराम करना चाहेंगे।


हरम पहुंच कर, बड़े चाव से हमने पकवानों का मदिरा का जी भर आनंद लिया। अब आप ये मत सोच लेना कि चाहे सौ पैग पिये और चढ़ी नह॥ चढ़ी पर बस इतनी कि सुरूर आ जाये,  उसके बाद हमने बत्तियां बुझाने का आर्डर फ़रमाया। फ़िर हुआ क्या ये तो न बता पायेंगे पर तत्काल हरम से दौड़ते भागते हम द्वारपाल के पास पहुंचे। द्वारपाल ने पूछा- क्या हुआ मियां, खैरियत तो है।  हमने कहा - " हुजूर आपसे गड़बड़ हो गयी वो हूर तो हैं पर हूर नही है" द्वारपाल बोला - "मियां हूर तो हैं पर हूर नही है ये क्या कह रहे हो। " हमने फ़ुसफ़ुसाकर कान में कहा- " हुजूर जो हूर आपने दी हैं वो न तो खातून है और न ही मर्द।" द्वारपाल हसने लगा - "मियां और तुम खुद क्या हो ये तो देखो।" हमने देखा तो हम और बौखला गये, हम भी उन खातूनों की तरह बीच का मामला बन चुके थे।

हम द्वारपाल के सामने मिमियाये - "हुजुर, कम से कम हम को तो ठीक कर दो।" द्वारपाल और जोर से हंसा- "मियां तुम अभी तक जमीन मामलो में अटके हो,  मरने के बाद तो रूह ही जन्नत में आती है शरीर थोड़ी न आता है।  रूह तो न आदमी होती है और न औरत, वो तो मां के पेट  अल्लाह उसे आदमी और औरत में तक्सीम कर देता है।"

हमने पूछा- " फ़िर उन हूरों का क्या करें।" द्वारपाल बोला - "अबे रूह हो, रुहानी मजा लो।" हम गुस्से में आ कर जन्नत के बाहर भागने लगे तो द्वारपाल ने पकड़ा- " अब कहा जा रहे हो तुम।" हमने कहा- " उस धोखेबाज, कमीनी तस्लीमा नसरीन को पीटने। खामखा लोगो को बरगलाती है कि आदमी है तो जन्नत में हूरो के साथ  ऐश करेगा और औरत हो तो जमीन में ही ऐश कर लो।"


तभी हमारी आंख खुली तो हमारा बेटा हमें झकजोर रहा था - " पापा उठो किसको धोखेबाज, कमीनी कह के नींद में चिल्ला रहे हो।" तभी पीछे से श्रीमती की आवाज गूंजी - " रहने दे बेटा, कल हूर की बात की थी तो सपने में किसी हूर के पास पहुंच गये होंगे, उसने भगाया होगा तो बड़बड़ा रहे हैं।" खैर साहब हमने राहत की सांस ली कि जिंदा भी है और 72 हूरें न सही, हमारी रग रग पहचानने वाली श्रीमती तो है। और उनके रहते हमारा जन्नत जाना तय है यह तो आप अब तक जान ही चुके होंगे।

Tuesday, November 1, 2011

डा. अनवर धमाल खान की आत्महत्या

अपने चुन्नु भाई ब्लाग जगत में गुस्साये घूम रहे थे हमने पूछ लिया - " क्या हुआ चुन्नू भाई सब खैरियत तो है।" वे भड़क गये, बोले -" दवे जी पिछले साल छह लाख लोगो ने आत्म हत्या कर ली। ये बेगैरत और मर जाता तो कितना अच्छा होता।" हमने कहा - " मियां बात साफ़ करो कौन मर जाता, क्यों मर जाता।" चुन्नू भाई बोले - "अरे यही मुआ अनवर धमाल, दिन रात हमारे धर्म के लिये अनाप शनाप लेख लिखता है।"  हमने कहा- "यार सुनो इस तरह किसी के आत्महत्या करने की बात सोचना अच्छी बात नही और ये अनवर धमाल तो बड़ा खतरनाक आदमी है। अभी तड़ से पोस्ट लगा देगा "हिंदू दूसरों के आत्महत्या की बात सोचते हैं" खामखा आपके कारण पूरी हिंदू कौम बदनाम हो जायेगी।" चुन्नू भाई भड़के हुये थे बोले - " चाहे जो हो जाये दवे जी, हम अपना स्टैंड नही बदलेंगे। ये तो अपने आप को उच्च शिक्षित भी कहता है और यह भी कहता है कि उच्च शिक्षा पाने वाले आत्म हत्या कर लेते हैं।" हमने उनको याद दिलाया - " उनके अनुसार वो बात केवल हिंदूओं पर लागू होती है।" चुन्नू भाई बोले - " अरे दवे जी आप भी क्या बात कहते हो,  क्या मुस्लिम आत्महत्या नही करते और नही भी करते हों तो इसको तो हम ही निपटा देंगे।"

हमने कहा - " चुन्नू भाई आप जरूर आईएसआई के एजेंट हो वरना अनवर धमाल के बारे में ऐसी बाते न करते।" चुन्नू भाई भड़क गये- " आपका दिमाग तो खराब नही हो गया हम और पाकिस्तानी एजेंट हम तो कट्टर हिंदूवादी आदमी है भाई।" हमने कहा- " कटटर हिंदूवादी होते तो कभी ऐसी बात नही करते। अपने इतने काम के आदमी कोई मारता है भला।" चुन्नू  जी सकपकाये बोले - " दवे जी, तबीयत तो ठीक है, कैसी बहकी बहकी बाते कर रहे हो।" हमने कहा - " हम बिल्कुल ठीक है भाई, आप मामला नही समझते हो। देखो कट्टरहिंदू वादी साठ सालों से कलम घिसते घिसते थक गये कि मुसलमान हिंदूओं के दुश्मन हैं, बटवारे में हिंदूओ के साथ ऐसा हुआ था, फ़लां जगह वैसा हो रहा है, देश में लव जिहाद चल रहा है। पर ये लोग भारत में हिंदू मुस्लिम एकता को नही तोड़ पाये। अब इस अनवर धमाल के एक एक लेख से सैकड़ो हिंदू मुसलमानों से नफ़रत करने लगते है। मियां अगर कट्टर हिंदू हो और मुसलमानों के खिलाफ़ देश मे आक्रोश खड़ा करना चाहते हो तो अनवर धमाल जैसे लेखकों को खोजो, पालो और इनके लेख अखबारों मे पैसा देकर छपवाओ। फ़िर देखो कैसे देश में नफ़रत की आग भड़क उठती है।" चुन्नू भाई बोले - "नही भाई हम भी देश मे प्रेम और सदभाव का वातावरण चाहते हैं, हमें देश मे आग नही लगानी।"  हमने कहा- " भाई, अगर आप शांती चाहते हो तो फ़िर उन लेखकों को भी रोकना होगा जो मुसलमानो और इस्लाम के बारे में दुष्प्रचार करते हैं। क्योंकि वे लोग भी आईएसआई के एजेंट हैं और देश के मुसलमानों को भड़का कर देश में अशांती लाना चाहते हैं।"

चुन्नू भाई बोले -" उनका विरोध तो हम कर लेंगे पर इस अनवर धमाल का क्या करें इसके लेख हमको भड़का देते हैं।" हमने कहा - " भाई आप ही लोग तो हो जो ऐसे मूर्खों के ब्लाग पर जा जा कर टिप्पणी देते हो और इनके ब्लाग चर्चित की सूची में टाप पर आ जाते हैं। आप लोग ऐसे लोगो को पढ़ो ही ना, टिप्पणी ही न करो तो चार घंटे में इनका लेख कहां गायब हो जाये मालूम ही न पड़े।  फ़िर भी मन नही माने तो ऐसे लोगो इमेल के जरिये अपनी भावनाएं पहुंचा दिया करो पर ऐसे लोगो के ब्लाग पर टिप्पणी कभी मत करो।" चुन्नू भाई प्रसन्न होकर बोले - " वाह दवे जी आपने तो जबरदस्त आईडिया दिया है मन प्रसन्न हो गया।" हमने कहा- " मियां, मन प्रसन्न हो गया तो फ़टाफ़ट हमारे ब्लाग पर टिप्पणी चिपका आओ "।


खैर साहब बात तो थी चुन्नू भाई की पर लागू हम सब पर होती है। और बात सिर्फ़ ऐसे लोगो के ब्लाग पर टिप्पणी न करने पर ही खत्म नही होती है। ये लोग तो सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिये ऐसा लेखन करते हैं। हम सब को  किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय को आहत करने वाला लेखन नही करना चाहिये । कुरान में उल्लेख है कि " किसी के खुदा को बुरा मत कहो कि वह तुम्हारे खुदा को बुरा कहेगा।" जाहिर है सम्मान देने से ही मिलता है। इतिहास में क्या हो चुका है यह हमारे हाथ में नही है पर भविष्य हम खुद बना सकते हैं।