Tuesday, June 26, 2012

हगने-हगने में अंतर



देखिये साहब इस देश के तथाकथित रूप से सभ्य होते जाने का  सबसे ज्यादा फ़र्क,  हमारी भाषा पर ही पड़ा है। खास कर उन शब्दो के उपर जो कथित रूप से निम्न स्तर की क्रियाओं के लिये प्रयुक्त होते थे। हगना, पखाना आदि आदि इत्यादी शब्द अब लुप्त प्राय हो चुके है।  मुझे याद है जब मै बड़ा हो रहा था, तब घर में शौचालय के लिये "पाकिस्तान" शब्द का प्रयोग होता था। खैर आज हगने का मामला सुर्खियों पर है। अपने   प्रस्तावित सभ्य नाम - "बापू शौचालय" से।  अब बापू के साथ शौचालय का नाम जुड़ने पर गोड़से वादी बहुत प्रसन्न होंगे।  गांधीवादी दुखी भी हो सकते हैं, इसलिये हमने "गोड़से शौचालय" भी प्रस्तावित कर दिया है।  देश में स्वच्छता के लिए महात्मा गांधी के अभियान का जिक्र करते हुए जयराम रमेश ने पर्यावरण मित्र टॉयलेट का नाम ‘बापू’ रखे जाने का सुझाव दिया है। उन्होंने  रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पर्यावरण हितैषी शौचालय  को लॉन्च करते हुए यह बात कही। वैसे नाम के सुझाव और भी है जैसे "ई-लू।"  "लू" या "पाटी" कान्वेंट स्कूलो से हिंदी भाषी घरो में उतरा "हगने" का एक तथाकथित सभ्य नामातंरण है। वैसे तो बड़े बूढ़े कह गये है कि नाम मे क्या रखा है।

नाम से हट अब काम में आया जाये। आज हमारा योजना आयोग गरीबो के शौचालय के लिये बड़ा चिंतित है।  आखिर "भारत स्वाभिमान"  के चखने के साथ, विदेशी व्हिस्की पीते,  बड़े अफ़सरो को विदेशी डिप्लोमेट खेत में हगते आदमी की याद दिला। भारत के अचीवमेंट को खारिज जो कर देते हैं। विदेशी दौरो में लाखो रूपये रोज के किराये वाले कमरे में बैठ कर हगते हुय, मोटेंक सिंग आहलूवालिया की आत्मा को कितना कष्ट होता होगा। कि उसका  देशवासी "ईंटा"लियन टाईलेट में खुले आसमान के नीचे भीगता हुआ, ठंड से कांपते हुये हग रहा होंगा। जैसे गरीबो की भूख को याद कर कई पुण्यात्माओ के निवाला हलक के नीचे नही उतरता। ठीक वैसे ही जमीन मे बैठ हग रहे गरीबो को याद कर,गरीबनवाज अधिकारियो के भी कमर के नीचे मल नही  उतरता होगा।

बात गंभीर है, जयराम रमेश अच्छे मंत्री है। लेकिन जब लक्ष्य ही दिशाहीन हो तो किस तरह देश का भला हो। पर्यावरण प्रिय बापू शौचालय के डिजाईन में करोड़ो खर्च किये। अब खरबो खर्च कर  49  कंपनियो को ठेका देकर शौचालय बनवाया जायेगा। उसको गरीब तक पहुंचाने में कितने अमीर हो जायेंगे, उसकी तो गिनती नही।  सरकारी योजनाओ का हाल तो सभी को मालूम है। योजना आयोग के अत्याधुनिक शौचालय की सुरक्षा लिये भी कैमरा फ़िट करना पड़ता है। सो बापू शौचालयों  की क्या गत होगी, जानना कठिन काम नही है।

अच्छा साहब तर्क तो देखिये-  "बापू गांव को स्वच्छ रखना चाहते थे"। अरे भाई बापू का इतना मानते हो। तो गांव का पैसा गांव वालो को दो। वे अपनी जरूरत, अपनी प्राथमिकता खुद तय करें। अभी ही प्रदूषण रहित चूल्हा योजना में देश के खरबो रूपये स्वाहा हो रहे हैं।  लेकिन दिल्ली के योजना आयोग के तीसरी मंजिल पर आलीशान बाथरूम में चैन से हगते लोगो को बड़ी चीजें ही सूझती हैं। जो जमीन मे बैठ के हगे, वही जमीन से जुड़ी समस्याओ पर चिंतन कर सकता है। किस गांव की क्या प्राथमिकताये है यह उन गांव वालो से बेहतर कौन तय कर सकता है। लेकिन समस्या ये है कि पैसा सीधे गांव वालो तक पहुंच जाये। तो बीच का बंदर खेलने वालो का क्या हो। जितने उंचे स्तर पर चीजो का निर्णय हो तो दलालो को उतनी आसानी। ग्राम स्वराज्य से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत दे गरीब आत्मनिर्भर बनें। खुद तय करे कि उसे कहां हगना है। या बाबा रामदेव चार सौ लाख करोड़ कालाधन वापस ले आयें। फ़िर इतना पैसा हो जायेगा कि घर घर ऐसा शौचालय बन जाये कि मल से बिजली बना बाकी बची खाद को उसी बिजली से खेतो तक पंप कर दिया जाये।

यह बात बेहद गंभीर है, छोटी बात नही है। चैन से बंद कमरे में हगने की इच्छा ने ही दलित वर्ग पैदा किया। मनुवादी स्वर्ण अगर घर में हगने की राजसी प्रवुत्ती त्याग देते। तो आज दलित शिरोमणी बन अरबो फ़ूंकती बहनजी  किसी खेत में लोटा लेकर बैठी होती। जब मल साफ़ ही न करना पड़ता तो  दलित ही न होता। मल जनित बीमारियो के कारण ही छुआछूत की कुप्रथा शुरू हुई। छुआछूत ही न होती तो भारत कमजोर न होता।  आश्चर्य की बात है कि मोहनजोदड़ो की खुदाई की सारी बाते सामने आयी। पर वहा के हग्गू खाने का कोई उल्लेख नही मिलता। क्या वे लोग इन सब मनुवादी प्रवुत्तियो से उपर थे। जहा तक मेरी जानकारी है लोथल आदि शहर बहुत विकसित थे। नाली और गटर की व्यवस्थायें पानी के बहाव पर आधारित थी। सो हमारे हिसाब से ये हगना गहन राष्ट्रीय शोध का विषय है। इस पर गंभीरता से काम होना चाहिये।

खैर इस व्यंग्य को दूर भी रखा जाये तो आज रासानियक खाद पर निर्भर खेत और फ़ंदे मे झूल आत्महत्या करता किसान इसी चीज का दंश भोग रहा है। खेत की उर्वरता को रिचार्ज करने का काम इंसानी और पशुओ का मल, पेड़ो से गिरी पत्तिया और इन पर निर्भर कृषी मित्र कीटो पर ही निर्भर था। इस कड़ी के टूटने से ही आज भारत का किसान उर्वरक और सबसीडी के लिये सरकार का मुंह ताकता है। खेत से सिर्फ़ लेने उसे चूसने की जिद और तथाकथित सभ्यता ने हमें जहर भरे भोजन का मोहताज बना दिया है। और ऐसी महान योजनाएं जिने देश के महान लोगो का नाम जोड़ श्रद्धेय बना दिया जाता है। चौतरफ़ा हमला है देश की दरकती अर्थवय्वस्था और सिसकते पर्यावरणतंत्र पर।

चलिये साहब मैने तो दिल की बात रख ही दी है। पर मुझे एक बात की पीड़ा साल रही है। इस देश के नाकारे टीवी के खोजू पत्रकार, जरा सुराग साजी कर यह पता लगाये। कि सोनिया गांधी, मनमोहन सिंग, लालकृष्ण आडवानी के घर के शौचालय कौन साफ़ करता है। उन सफ़ाई कर्मचारियों की जात से लेकर उनका दमकता चेहरा टीवी पर आ जाये, तो जरा दिल पर चैन पड़े। हम भी तो देखे कि दलितो से शौचालय साफ़ कराने वाले ऐसे महान अंबेडकर भक्त नेताओ के मुंह से क्या बोल फ़ूटते है। वैसे फ़िर तो शायद सारे अपना बाथरूम खुद साफ़ करने लगे। और देश की जनता को चैन मिले कि साले जिस लायक है उस काम को करने तो लगें।

Tuesday, June 19, 2012

दो पति- दो राष्ट्रपति


 देखिये साहब, ऐसे तो हमारा राष्ट्रपति पद से कुछ खास लेना नही है।  देना नही भी चाहे, तो भी सरकार हियां उहां टैक्स लगा कर वसूल ही लेती है। लेकिन इन दिनो हम बड़े चिंतित है कि राष्ट्रपति कौन बनेगा। हम इसे बात का अनुभव भी नही कि चुनाव कैसे जीता जाता है। हम तो पति का चुनाव भी बड़ा मुश्किल से जीते थे। उस में भी ऐसे ऐसे लुभावने वादे किये थे। सारी बुरी आदते छोड़ने की कसमें खायी थी। कि मरी आज तक पीछा नही छोड़ती। श्रीमती को टोका नही कि से कि तड़ से मनीष तिवारी टाईप  बयान दे देती है- "किस मुंह से आप हमें टोकते हैं। आप तो खुद सर से कमर तक झूठ बोल कर हमसे शादी किये थे। ऐसे में हम घरेलू विवादो से जरा दूर ही रहते है।

वैसे देखा जाये तो राष्ट्रपति की हालत भी आज के पति से क्या अलग है। जो बीबी कहे उस पर मुहर लगाने वाले रबर स्टैंप के अलावा आज पति कर भी क्या सकता है। हल्का फ़ुल्का विरोध तक महिला थाना की घर से दूरी पर निर्भर करता है। हमारे यहां तो हमारा डाग टामी भी जानता है कि सत्ता का केंद्र किधर है।  सत्ता के केंद्र से याद आया कि एक विदेश एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर ने कहा है- "भारत में सत्ता का केंद्र प्रधानमंत्री के पास नही प्रधानमम्मी के पास है।" बोले तो अपने विदेशी नस्ल के टामी की तरह, अगर उस विदेशी एजेंसी के आकलन पर भरोसा किया जाये। तो अपना प्रधान मंत्री भी अपुन के और राष्ट्रपति के टाईप रबर स्टैंप है। जो प्रधानमम्मी कहे वही करता है। अब हमारे गरीब देश के पास जब पहले से ही एक रबर स्टैंप है। तो दूसरा रबर स्टैंप की जरूर क्या है रे भाई। खाली फ़ोकट हालिया राष्ट्रपति की तरह बावर्चियो को लेकर विदेश फ़िरेगा। गरीब जनता के अरबो रूपये का नाश करेगा। फ़ोकट सफ़ेद हाथी घर बैठाने का खर्चा हम लोग क्यों उठाये। जब मम्मी के इशारों पर ही इसे संचालित होना है तो इतनी उठा-पटक क्यों। प्रधान मम्मी का चिर परिचित रोबोट मतलब मन्नू तो है ही...फिर दूसरे रोबोट की जरूरत का औचित्य नही समझ आता।

वैसे त हमें भारत की आम जनता की तरह, कोई मतलब नही है कि देश का पैसा कहां लुटा जा रहा है। दो प्रधान मंत्री भी बन जाये हमारी बला से। लेकिन राष्ट्रपति में पति जुड़ा है और देश को दो दो पति मिले। इससे गलत टाईप का फ़ीलिंग होता है। आखिर मर्द होने के नाते कितनाओ पत्नी बना लिया जाये, लेकिन पति दो हो जाये। इ बर्दाश्त करने वाला बात नही है भाई। आखिर देखा सीखी ही न माहौल बिगड़ता है। सोचिये कोई लड़की प्रेमी से कहे-  "बाकी सब त ठीक है। पर मैं दो पतियों से शादी करूंगी। सोच लो, फ़िर आई लव यू कहना।" अब सोचिये आज तक लड़का क्या कहता -"अरे पगला गयी हो क्या, ऐसा कहीं होता है भला।" लड़की तब  कुछ न कह पाती। लेकिन अब मामला में फ़ेरा हो जायेगा। लड़की कहेगी- "लो जब देश के दो राष्ट्रपति हो सकते हैं, तो मेरे क्यों नही।" इसलिये हम इस देश में ये दो रबरस्टैंप की परंपरा चलाने के सख्त खिलाफ़ है। पर हमारे जैसा आम आदमी कर ही क्या सकता है। सिवाये कलपने या भगवान से अपील करने के सिवा।

अब भगवान से अपील करने जाओ, तो पुराने ज्ञानियो की सीख याद आ जाती है। कि हर बुराई के पीछे भगवान कुछ न कुछ अच्छाई देता है। वैसे अपने बुर्जुआ क्रांतीकारी दोस्त लोग कहते हैं। कि धर्म में ये सब बाते शोषण करने के लिये सिखाई जाती है। ताकी आदमी शोषित होने में भी फ़ायदा देखे। लेकिन अपुन शादी के बाद वामपंथी से घोर आस्तिक हो चुका हूं। कारण कि पत्नी ने जब पीड़ित करना शुरू किया। तब बाद में कितना भी पछताउं, लेकिन उस समय मुंह से ’हे भगवान, बचाओ’ निकल ही जाता था। उस पर हमारी आस्तिक श्रीमति टांट और कस देती- " बड़े नास्तिक बनते हो, त काहे मेरे भगवान को याद करते हो।" सो कुछ फ़ब्ती से, कुछ शोषण से तंग आकर धीरे धीरे भगवान और नर्क के प्रति मेरी घोर आस्था हो गयी। और ज्ञानी लोग भी देख भाल के ही कहे हैं। जान गये होंगे कि भाई शोषण त होना ही है चाहे पत्नी करे चाहे नेता या  राजा। ऐसे मे तुलसीदास जी का कहा -"जेही विधी राखे राम तेही विधी रहिये। सीता राम सीता राम सीताराम कहिये।" आज भी सटीक बैठता है और युगो युगो तक बैठता ही रहेगा। अब ये बुर्जुआ क्रांतीकारी भी केतना ऎड़ी अलगा अलगा कर भाषण पेले। क्रांती मे तो  होता यही है कि एक जालिम को हटा कर दूसरा जालिम बैठ जाता है। ये लोग फ़ोकट खून भी बहवा देते हैं, अपना गांधी का पालिसी बेस्ट -"अहिंसा" कोई। एक बार शोषण करे त दूसरा गाल माफ़ कीजियेगा गाल का बात फ़िट नही बैठता। अब जो चाहे बैठा लीजिये, लेकिन सामने पेश कर दीजिये।


 ऐसे में ईश्वर के प्रति  पूर्ण आस्था से मैने सोचा कि भाई। इसमें भी भलाई छुपा ही होगा कुछ न कुछ। तभी कही दूर अंदर से आवाज आयी- "ऐ छोटी सोच वाले आम आदमी, देश की प्रधानमम्मी की तरह दूर की सोच। देख भारत में कन्याओ का अनुपात कम हो रहा है कि नही। कन्या भ्रूण हत्या धड़ाधड़ हो रही है कि नही। ऐसे में हजारो साल से एक पति के सोच वाले समाज को। नई दिशा देने के लिये दो राष्ट्रपति बनाना जरूरी है। धीरे धीरे कन्याओ की घटती संख्या के साथ एक लड़की में दो लड़को का अनुपात आ ही जायेगा। फ़ेर समाज में हाहाकार फ़ैलने से बचाना हो त क्या रास्ता बचेगा।  दो राष्ट्रपति की तरह दो पति का सिस्टम लागू बिना किये उद्धार कैसे होगा।" इतना सुनते ही साहब हमनें भगवान को प्रधान मम्मी को और दोनो रबर स्टैंप  को सादर नमन किया। और भजन गुनगुनाने लगे-

जेही विधी राखे राम तेही विधी रहिये।
सीता राम सीता राम सीताराम कहिये।।

Thursday, June 14, 2012

बालतोड़ और चिदंबरम

साहब हमें अचानक बालतोड़ हो गया। बालतोड़ बड़ी अजीब तरह का फ़ोड़ा है। जो आदमी को ऐसी जगह हो जाता है।  कि कह भी नही सकता और सह भी नही सकता की स्थिती रहती है। लेकिन गर्भवती स्त्री का गर्भ और नेता के पाप की तरह फ़ुल स्टेज  आने पर इसे छुपाया नही जा सकता। साहब ये हिंदुस्तान ऐसा मुल्क है। जहां आवाज धीरे आने पर ही सामने वाला खैरियत पूछने लगता है। लेकिन बालतोड़ के मामले में आपका कितना भी खैर ख्वाह होगा। बालतोड़ और उसके होने वाली जगह का उचित संबंध जोड़ते ही मुस्कुरा उठता है। खैर साहब हुआ ऐसी जगह था कि महिला डाक्टर को नही दिखाया जा सकता था। कई लोग इस लाईन को पढ़ कर अपने कुत्सित मन में कुछ और समझ लेंगे। लेकिन साहब आप ऐसे नही है सो बताये दे रहा हूं कि हुआ जांघ पर है। अत्यंत पीड़ा में हमने सोचा कि इस पीड़ा का शमन कैसे किया जाये। आखिर बाल तोड़ सांसारिक कष्टो की तरह उपर वाले के द्वारा तय किये समय पर ही जान छोड़ता है।

 सो हमने श्रीमती से कहा- " सुनो प्रिये, आप हमारी अर्धांगिनी हो। भगवान से प्रार्थना कर हमारी आधी पीड़ा आप ले लो। कुछ क्षण विचार करने के बाद श्रीमती बोलीं - कल बाबा रामदेव टीवी पर कह रहे थे कि आदमी को अपने पापो का फ़ल खुद ही भुगतना पड़ सकता है। सो इस मामले में अर्धांगिनी वाला आप्शन काम नही कर सकता।" हमने कहा -"चलो कम से कम सिर की मालिश ही कर दो। पीड़ा से ध्यान बट जायेगा।" इतना सुनते ही श्रीमती ने करारा जवाब दे दिया -"हां घर मे चालीस नौकर बैठा रखे है श्रीमान ने कि वो घर के काम करें और मैं मुफ़्त बैठी सेवा करती रहूं।  गया पुराना जमाना  कि औरते अब गधा मजूरी करती फ़िरें।" हम भड़क गये- "हमको गधा कैसे कहा आपने। वाह रे कलजुग ये दिन भी आना बाकी था।" श्रीमती की तरफ़ से गोला आया -"लो हमने गधा कहा ही नही । पर अब जरूर सोच में पड़ गये हैं। आखिर जो मुहावरा न समझे वो लेखक गधा हुआ कि नही।"

 इतना सुन हम समझ गये, कि भाई श्रीमती से उलझ, पीड़ा कम करने की बात बनेगी नही। आखिर बालतोड़ के बदले दिलतोड़ का सौदा, मुनाफ़े वाला कहां हो सकता था। अचानक दिमाग में गाना बजने लगा -"दुनिया मे कितने गम है मेरा गम कितना कम है।" हमने सोचा वाह मियां, किसी ऐसे मामले पर विचार किया जाये कि अपनी पीड़ा कम लगने लगे। तो भी काम चल सकता है। पर फ़िर हमने सोचा कि बाल तोड़ जैसी भयानक  पीड़ा और कौन सी हो सकती है कि हिले तो भी दर्द न हिलो तो भी दर्द। बालतोड़ का मुकाबला बेशक बालतोड़ ही कर सकता है। फ़ेर हमने छोटे से दिमाग पर जबरदस्त जोर डाला- ’ हे मन, जल्दी बता कौन सबसे ज्यादा पीड़ित है। लौटती डाक से जवाब आया कि भाई कांग्रेसियों से ज्यादा पीड़ित आज कोई नही। फ़ेर हमने दिमाग लगाया के भाई सबसे अधिक कौन पीड़ित किये हुये है इन कांग्रेसियों को। पहले अन्ना, बाबा, ममता का ध्यान आया। फ़ेर हम सोचे, ये तो फ़ारेन पार्टिकल है, बाहरी तत्व है, गैर कांग्रेसी है। ये बाल तोड़ नहीं हो सकते। बालतोड़ तो शरीर का अंग होता है। ऐसा अभिन्न अंग जिसे आप चाह कर भी भिन्न नही कर सकते। समय आने पर ही टलेगा।

ऐसे में तो किसी पार्टी के आदमी को ही खोजना पड़ेगा। जो कांग्रेसियों को बालतोड़ की तरह का कष्ट दे रहा हो। बाल तोड़  की विशेषताओं पर गौर किया जाये। तो यह एक ऐसी मुसीबत है। जो रह रह कर रूक रूक कर असीम दर्द पैदा करती है। अब कांग्रेसियो को तो ऐसी पीड़ा चिदंबरम साहब ही दे रहे हैं। हर कुछ वक्त में उनका कोई न कोई नया लफ़ड़ा चला आ रहा है। जिस तरह बालतोड़ से छुटकारा पाना हमारे बस में नही। जब बालतोड़ का मन होगा तभी जायेगा। ठीक उसी तरह चिदंबरम साहब से छुटकारा पाना भी कांग्रेसियो के बस में नही। चिदंबरम साहब जब टलने की सोचेंगे, तब ही छुट्टी मिलेगा। हम अगर लोगो से कहे कि भाई ये प्यारा बालतोड़ हमारे शरीर का बहुत अच्छा सम्मानित कुलीग है। तब कोई भरोसा करेगा नही। ठीक वैसे ही मनमोहन सिंग जी के चिदंबरम साहब को, बहुत अच्छा सम्मानित कुलीग बताये जाने पर कोई भरोसा नही करता। अब नैतिकता के आधार पर जरूर उन्हे बालतोड़ करार दिया जाना अनुचित नजर आ सकता है। पर  साहब  जब नेताओं का नैतिकता से कोई लेना देना नही।  इस मुये बालतोड़ का भी नैतिकता से कोई लेना देना नही। तो हम काहे नैतिकता से नाता जोड़। अपने दर्द को कम करने का एक आसान जरिया जाया होने दें। वैसे भी आजकल उपमा देने की होड़ लग गयी है। आदरणीय मनमोहन सिंग को कोई शिखंडी कह रहा है, तो कोई धृतराष्ट्र। अब कोई कहे कि ’भाई ये तो पौराणिक चरित्र है।’ तो अपना बालतोड़ भी पीछे नही। जब से मनुष्य़ इस धरती पर जन्मा है। ये बाल तोड़ उसे दुखी करता ही आया है। बल्कि हम तो दावा करते है कि ये बालतोड़ दुनिया का सबसे प्राचीन पौराणिक कैरेक्टर है। बल्कि सोचते-सोचते, अब सोच रहा हूं।  कहीं ईश्वर की खोज इस बाल तोड़ के कारण ही तो नही हुई। इस बालतोड़ की भयानक पीड़ा में जब आदिमानव चीत्कारा होगा। तभी ईश्वर ने प्रकट हो, उसकी पीड़ा का शमन कर अपना परिचय दिया होगा। बल्कि सोच जाये कि आदिमानव को पढ़ना लिखना आता। तो आज आन रिकार्ड ईश्वर का नाम मौजूद होता। फ़िर हम लोग अलग अलग धर्मो में न बटे होते। और इन नेताओ को ऐसा सबक सिखाते कि नानी याद आ जाता।

ऐसे मे चिदंबरंम साहब को बालतोड़ कह देना, हमे किसी हिसाब से गलत भी नजर नही आता। और कांग्रेस की पीड़ा तो हमसे कई गुना ज्यादा है। हमारे बालतोड़ को  मीडिया दिखायेगा तो भी धुंधला स्क्रीन करके। कांग्रेस के बालतोड़ को तो दिन रात धांय धांय दिखाया जाता है। आठ दस स्व्यंभू विद्वानो की चर्चा कराई जाती है।  अब  चिदंबरम साहब की तरह हमारा बालतोड़ भी बयान दे सकता है। कि - " चाहे तो खंजर भोंक लो, पर मुझ मासूम बालतोड़ की नीयत पर सवाल मत उठाओ।" अब बालतोड़ को छूना ही नानी याद दिला देता है। तो कौन बलवान उसमे छुरा भोंक सकता है।  ऐसा सोच साहब हमारा दिल बाग बाग हुआ ही था। कि हमारा बालतोड़ जोर से लौंका। हमे लगा कि कह रह हों- ए दवे जी, हम भले बालतोड़ है। पर हमारी भी कोई इज्जत है कि नही।  ऐसे लोगो से हमारा संबंध जोड़ा, तो चेताये देते है।  सौ जन्मो में पीछा नही छोड़ेंगे।" चलिये साहब अब हम बालतोड़ की साख पर धब्बा न लगायेंगे। पर ध्यान रहे हमारे और कांग्रेस के बालतोड़ पर हंसियेगा मत। लोग कहते है कि जो बालतोड़ पीड़ित पर हंसा उसको बालतोड़ होना तय है।

Monday, June 11, 2012

गृह मंत्री की नाक



संसद में विपक्ष के नेता ने आरोप लगाया कि गृह मंत्री की नाक कट गयी है, लिहाजा उन्हे इस्तीफ़ा दे देना चाहिये। सत्ता पक्ष ने जवाब दिया- "ये लोग जिनकी खुद की नाक कटी हुयी है, दूसरो की नाक के बारे मे बात करने की हिम्मत कैसे करते हैं।" विपक्ष के नेता बोले - " साहब क्या  जमाना आ गया है| पूरा देश जानता है कि गृह मंत्री घोटालो मे लिप्त थे।  यहां तक कि वो सांसद  चुने तक घपले से गये हैं। इसके बाद भी ये बेहया सरकार कहती है कि गृह मंत्री की नाक नहीं कटी।" सता पक्ष ने कहा - "क्या सबूत है कि गृह मंत्री घोटाले में व्यस्त थे।  हम तो कहते हैं कि घोटाला हुआ ही नही वो तो हमने गरीबो को ध्यान रखते हुये कम कीमत पर दलालो को लाइसेंस बांटे।  । कम कीमत में मिली चीज का दाम भी कम होगा , उस पर टैक्स भी कम लगेगा तो मुनाफ़ा भी कम होगा। सो भाईयो घोटाला तो हुआ ही नही, नाक कटी कहां।" इसके बाद संसद में हो हल्ला मच गया। कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।

संसद के बाहर, विपक्ष ने बयान दिया कि चूंकि गृहमंत्री  नाक विहीन हो चुके हैं।  बिना नाक का मंत्री अंबेडकर साहब के बनाये संविधान और इस संसद पर कलंक है। सो जब तक कोई नाक वाला आदमी इस नकटे की जगह न ले ले। तब तक हम संसद चलने न देंगे। इस खबर से सरकार में खलबली मच गयी। आखिर संसद चलती तब न उसके नेता विपक्ष से दुगुनी आवाज में चीख अपनी बात संसद से मनवा सकते थे। आखिर लोकतंत्र मे कानून ध्वनीमत से पारित होते हैं। यदि संसद ही न चले तो सरकार कैसी। सो इसके लिये कैबिनेट की बैठक बुलाई गयी। झांय झांय लपलपाती लालबत्ती गाड़ियों के प्रधानमंत्री आवास पहुंचने से पहले। उसमे बैठे लोगो के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया कि भाई प्रधान मम्मी इस मीटिंग मे क्या सुनना चाहती है वो तो पहले जानें। प्रधान मम्मी के दफ़्तर से आती छुट पुट खबरो ने बैठक का एजेंडा ही बदल दिया। सवाल अब यह नही था कि बिना नाक वाले गृहमंत्री हटाया जाय। बल्कि मुद्दा अब यह था कि गृह मंत्री की नाक को वापस कैसे लाया जाये।

 कोर ग्रुप की मीटिंग शुरू होते ही वयोवृद्ध मंत्री जो कभी प्रधानमंत्री नही बन सकते थे ने सबसे सुझाव मांगा। चर्चा घूम के इस बात तक पहुंची कि बेचारे गृहमंत्री ने तो नाक कटाई ही पार्टी के लिये है। वरना जब नाक कटने की नौबत आयी तब वे नाक पीछे ले जाकर अपनॊ नाक को साफ़ बचा सकते थे। लेकिन चूंकि प्रधान मंत्री कार्यालय से पत्र आया था कि प्रधान मंत्री की नाक को इससे मामले आर्म्स लेंथ की दूरी पर रखा जाये। सो ऐसे मे किसी न किसी की नाक कटे बिना गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया जा सकता था। ऐसे स्वामिनी भक्त गृहमंत्री को न बचाया गया। उनकी नाक न वापस जोड़ी गयी। तो कार्यकर्ताओं तक  संदेश चला जाये कि नाक कटते ही पार्टी किनारा कर लेती है। तब तो पार्टी का काडर बेस ही पार्टी से बिचक जायेगा।

ऐसे हाहाकारी संकट से बचने के लिये सारे मंत्रियो की आंख पार्टी के प्रधानमंत्री की ओर घूम गयी।  दसियो निगाहे अपनी ओर घूमती देख प्रधानमंत्री ने मरी सी आवाज से कहा। आप लोग देख लीजिये मैं ईमानदार आदमी हूं इस बेईमान में मुझसे कहते न बनेगा।  एक युवा मंत्री ने सुझाव दिया कि नाक कटी है। पर केवल सैद्धांतिक रूप से। अभी मामला कोर्ट के सामने है ही। वहां से बरी होते ही कटी हुई नाक को वापस जुड़ने से कौन रोक सकता है। आखिर लोकतंत्र यही तो है कि एक आदमी भले सौ लोगो के सामने हत्या कर दे। पर कानून तो अंधा होता है न उसे दिख नही सकता। तो देर सवेर अगर उसे अदालत बरी कर दे। तो हत्यारे पर हत्या का आरोप नही लगाया जा सकता। वरना अंधे कानून की अवमानना हो जाती है।

लेकिन कभी प्रधानमंत्री न बन सकने वाले वयोवृद्ध मंत्री जानते थे कि इससे मसला शांत न होगा। सो उन्होने  कहा कि गृहमंत्री की नाक ऐसे वापस नही जुड़ सकती। गृहमंत्री को नयी नाक लगाई जाये। एक जूनियर मंत्री ने सवाल दागा कि सर यह नयी नाक कंहां मिल सकती है। इस पर वयोवृद्ध मंत्री ने जवाब दिया कि भाई इसके लिये किसी विपक्षी पार्टी के नेता की नाक काटनी होगी। जूनियर मंत्री ने फ़िर पूछा सर वो लोग तो सत्ता मे है नही फ़िर उनकी नाक कैसे कटेगी और कटेगी नही तो गृहमंत्री में जुड़ेगी कैसे। वयोवृद्ध मंत्री ने मुस्कुराते हुये बेल बजाई। दरवाजा खुला और  सीबीआई के निदेशक ने कदम रखा। उसके पास फ़ाईलो का ढेर था, हर फ़ाईल से किसी न किसी विपक्षी नेता की नाक कटनी तय थी। वयोवृद्ध मंत्री ने सीबीआई निदेशक को रवाना कर सारी फ़ाईले अलग अलग मंत्रियों के हवाले कर दी और कहा -  : ईमानदार विपक्षी नेताओं से कहिये कि उनकी नाक कटवा सकने वाले इन दस्तावेजो को हमने दबा कर रखा था। पर अब  मजबूर है क्योंकि हमे अपने गृह मंत्री को नयी नाक लगाकर देनी ही है। अतः सुझाव दें कि किसकी नाक काट कर गृहमंत्री की नाक की जगह लगाई जाये।

विपक्षी गलियारों मे खलबली मच गयी। आनन फ़ानन में शीर्ष नेताओ की बैठक हुई। हर कोई अपनी नाक सहला रहा था। एक हिम्मत वाले नेता ने कहा -"जिस बुरी तरीके से गृहमंत्री की नाक कटी हुई है। वैसे में हमारे मे से किसी की भी नाक काट कर गृहमंत्री को नही लगाई जा सकती।" दूसरे ने कहा- "अपनी नाक की चिंता में अगर नकटे गृहमंत्री को छोड़ दिया तो देश थू थू करेगा। वयोवृद्ध विपक्षी नेता ने सबको शांत किया बोले -"आप लोग लोकतंत्र की मर्यादा को तार तार होने कैसे दे सकते हो। इस संसद के गौरवशाली इतिहास मे कई ऐसे नाजुक क्षण आये जब प्रधानमंत्री से लेकर अनेक मंत्रियो की नाक कट सकती थी लेकिन लोकतंत्र की गरिमा को ध्यान मे रखते हुये हमने कभी यह नौबत नही आने दी है। नाक काटने का काम अदालत का है। सांसदो का अधिकारक्षेत्र आरोप लगाने तक सीमित है।" एक युवा नेता ने तर्क रखा - "आज पूरा देश जान रहा है कि गृहमंत्री की नाक कटी हुई है और हम किस तरह इस तथ्य से इंकार कर सकते हैं। वयोवृद्ध विपक्षी नेता मुस्कुराते हुये बोले- " हमको कब इंकार करना है। आखिर देश मे क्या घोटालो और घोटालेबाज मंत्रियो की कोई कमी है। बाकियो पर भी तो ध्यान देना ही है कि नही। कि एक के चक्कर मे बाकी घोटालेबाजो को चैन से जीने दिया जाये। 

विपक्ष के गलियारों से सत्ता पक्ष के गलियारो से शांती के कबूतर उड़ाये गये। नाक आखिर नाक है किसी की भी नही कटना चाहिये। और पक्ष विपक्ष में आना जाना तो लगा हुआ है। देश की सेवा सर्वोपरी है आपस मे नाक काटने की होड़ शुरू हो गयी। तो देश में अराजकता और अंधकार छा जायेगा। फ़िर ऐसे अनुभवी नेता तैयार करने में दशको का वक्त लग जायेगा। अगले दिन संसद की कार्यवाही शुरू हुई। विपक्ष गृहमंत्री के सदन से बाहर जाने की मांग पर अड़ा हुआ था। भारी हो हंगामे के बीच गृह मंत्री ने बड़े भावुक आवाज से कहा कि-  "सदन में विपक्ष के नेता उनके पिछले तीस वर्षो से मित्र हैं। वे मेरा चरित्र अच्छी तरह से जानते हैं। चाहे तो मेरे दिल को चाकू से चीर लीजिये। लेकिन मेरी इमानदारी पर सवाल न उठाईये।" इतना कहते ही गृहमंत्री की आंखो मे आंसू आ गये। पूरा सत्ता पक्ष रो पड़ा। विपक्ष भी आंसू रोक न पाया। आंसुओं से दिल के साथ साथ आंखो का मैल भी निकल गया। अब सबने साफ़ साफ़ देखा गृहमंत्री की नाक कटी हुई नही थी। अपनी जगह चमक रही थी। गृहमंत्री ने अपनी नाक को सहला राहत की सांस ली। विपक्ष के नेता भी अपनी अपनी नाको को सहला रहे थे। आखिर नाक से ही सूघंने  की क्रिया संपन्न होती है। नाक ही नही रहेगी तो विपक्ष के नेता नये घोटालो को सूंघ कर कैसे खोद निकालेंगे। आखिर इस महान देश को रसातल मे जाने से बचाना है कि नही।

Friday, June 1, 2012

हाय हमारा आदरणीय़ शिखंडी जी




अरे साहब क्या जमाना आ गया है, कोई भी मुंह उठा के कुछ भी कह देता है। और ये तथाकथित बुद्धीजीवी इनको हिंदु पौराणिक पात्र ही मिलते है, बदनाम करने को। अरे भाई जरा मुसलमान या इसाई पौराणिक पात्रो को ऐसे बदनाम कर के तो बताओ,  तब जाने कि धर्म निरपेक्ष हो। भूषणवा का हिम्मत कैसे हुआ इस मन्नू का शिखंडी से तुलना करने का। अरे कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली। और ये भाजपा वाले भी अईसे बड़े हितैषी बनते है हिंदुओ के। पर इस अपमान पर चोंच नही खुल रहा है। प्रवक्ता रूढ़ी बाबू कह रहे थे कि पद का सम्मान करन चाहिये, शिखंडी नही कहना चाहिये। अरे स्वयंभू  हिंदु रक्षको काहे नही धर्म ग्रंथ पढ़ते। पढ़े होते तो जान जाते। कितना तप करने के बाद वो राजधर्म की रक्षा के लिये और अपने अपमान का बदला लेने के लिये शिखंडी के रूप में जन्मे थे। और इ ससुर मन्नू तो जिंदगी ऐश किया बड़े बड़े पदो में और फ़ोकट प्रधानमंत्री बन गया। और ये तो राजअधर्म की रक्षा के लिये बनाया गया है। दोनो की तुलना हो कैसे सकती है।


और देखिये शिखंडी जी महाभारत का युद्ध लड़े थे कि नही पूरा वीरता से।  भीष्म जी को दिव्यज्ञान से पता था कि वो पिछले जन्म में महिला थे, इसलिये शस्त्र नही उठाये। बाकी लोग तो लड़िये रहे थे शिखंडी जी से। उनका गिनती भी युद्ध के महारथियो में आता था। और इ मन्नू कौन युद्ध लड़ के आया है रे भाई। मुंह छुपा के पिछला गेट से राज्यसभा सांसद बना दिये है। एक बार लड़ने भी गया था चुनाव समर में, चारो खाने चित्त होकर लौटा। अब आ जाईये इ भ्रष्टाचार का बात में। जिसके लिये शिखंडी जी के नाम का प्रयोग किये हैं। अमा मन्नू कहाँ से शिखंडी जी हो गया? .यहाँ पर मान भी लिया जाये कि  भूषनवा लोकतंत्र को भीष्म बता कर मन्नू को शिखंडी जी करार दे रहे हैं। पर महाभारत काल  में नारी पर शास्त्र न उठाने का प्रचलन था। ,इसी वजह से अर्जुन जी ने  शिखंडी जी के पीछे छुप कर निशाना लगाया था। पर यहाँ तो तस्वीर ही उलटी है..मन्नू जी के कांधे पर रख कर  बन्दूक  चलने वाली ही  महिला बोले तो भारत की प्रधान मम्मी हैं। हुई न स्थिति बिलकुल  उलट...तो फिर शिखंडीजी जैसे पूज्यनीय पौराणिक पात्र की तुलना मन्नू जैसे से करने की हिम्मत कैसे हुई।  भूषणवा ने माफ़ी न मांगी तो ठीक न होगा, हम कहे देते हैं। फ़िर न कहना कि दवे जी कहे नही थे।


अब आ जाईये हिंदु धर्म के स्वयंभू ठेकेदार संघ पर। काहे भाई, दिन भर बैठ कर इहां उहां का  फ़र्जी क्लेम करते रहते हो। कि हिंदु लोग इतना हजार साल पहले बैटरी खोज लिये थे, बिजली खोज लिये थे। और ये खोजा खोजाया सत्यापित चीज नजर नहीं आ रहा है। कि हम हिंदुओ को दहेज में मिला हुआ खजाना जान लिये हो। कि जहां मर्जी होगा वही हल्ला मचाओगे,  फ़लां मदिर का घंटा बजाने नही दे रहे। ढिकां जगह लव जेहाद हो रहा है। और यहां महाभारत के इतने महान शिखंडी जी का अपमान हो गया। हिंदुओ की आत्मा फ़ूट फ़ूट कर रो रही है। तो मुंह से बोले नही फ़ूट रहा है। आप लोगो को भी हम चेताये दे रहे है। राम के नाम से आनंद उठाते उठाते चर्बी चढ़ गया दिखता है। एक सप्ताह  के अंदर इस मामला में भारत बंद नही किये। उ भूषणवा का पुतला नही जलाये। तो जान लेना कि हम नया  राष्ट्रीय हिंदुरक्षक दल ( दवेवादी) बना लेंगे। फ़ेर न कहना कि दवे जी बेरोजगार कर दिये और चेताये भी नही थे।

और बुद्धीजीवियो, पत्रकारों तुम लोग भी कान खोल कर सुन लो। मन्नू को पाखंडी कहो, कोयला चोर कहो, चमचा कहो, बेशरम कहो तब तक त ठीक है। लेकिन  हमारा महा पुरूषो\ स्त्रियों को बदनाम करोगे तो अईसा धुलाई करेंगे सारा बुद्धी भुला जायेगा। जनता के दिल का बात बताने के लिये एक शेर और कहे देते हैं उससे समझ लेना, वैसे तो समझे हुये हो, पढ़े लिखे हो, फ़ेर भी चेता दे रहे हैं। नही तो कहोगे कि दवे जी एलर्ट नही किये थे। सुनो और बिना हुज्जत किये गांठ बांध लेना


तुम जनता को न चाहो त कोई बात नही


भ्रष्टाचारियों को चाहोगे, तो दिक्कत होगा